बन गया मुसाफिर : सकलैन अब्बास जाफरी
मैं सड़को का दोस्त बन गया
है लो बन गया मैं मुसाफिर
सड़क सड़क गली गली
शहर शहर नगरी नगरी
फिरता रहा हूं बस हसीन मंज़र की तलाश में
खामोशी से जीने
खामोशी को सुनने
इस भीड़ की दुनिया से
विदा ले लिया है हमने
और बन गया हूं मैं मुसाफिर
सफर दो कदम का
मंज़िल के लिये चला हूं
मंज़िल का तो कोई अक्स नही
मुसाफिर बन गया हूं।
एक धुन एक तरंग से जी रहा हूं
मुझे हर आवाज़ से नफरत हो गई है
ऐ लोगो मुझे तन्हा कर दो अब
काफिला बन गया हूं मैं
तारीफ क्या हो उस चाँद की
की जिसकी खिदमत खुद ख़ुदा करे
और जल रहा हूं मैं लम्हा लम्हा
जैसे किसी लोहार का लोहा हूं।
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