Saturday 24 August 2019

Latest poetry saklain abbas jafri



1- अब मुझको नींद नही आती है रातो को।।
    चिराग़ बुझते ही एक जुगनू बैठ जाता है आंखों पे।।

2-रहते है दोनों आमने सामने एक उम्र से।।
   पर कभी एक न हो सके ये ज़मीन ये आसमाने।।

3-उलझा उलझा रहता हूं।
   पता नही अब मैं कैसे जीता हूं।।

4-बहुत दूर उड़ चुका है वो परिंदा।।
   जो पिंजरे से गलती से उड़ गया था। 

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